मैं दिवाना हूँ सदा का मुझे मत क़ैद करो
जी निकल जाएगा ज़ंजीर की झंकार के साथ
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जी तलक आतिश-ए-हिज्राँ में सँभाला न गया
इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर
शब जो दिल बे-क़रार था क्या था
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
थोड़ी सी बात में 'क़ाएम' की तू होता है ख़फ़ा
गो ब-नाम इक ज़बान रखती है शम्अ
याँ सदा नीश-ए-बला वक़्फ़-ए-जिगर-रेशी है
फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर
मैं हूँ कि मेरे दुख पे कोई चश्म-ए-तर न हो
चाहिए आदमी हो बार-ए-तअल्लुक़ से बरी
जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ