ख़स नमत साथ मौज के लग ले
बहते बहते कहीं तो जाइएगा
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इस को न रात कह तू न इस को बता ग़लत
क्या में क्या ए'तिबार मेरा
मय की तौबा को तो मुद्दत हुई 'क़ाएम' लेकिन
न पूछो कि 'क़ाएम' का क्या हाल है
रहने दे शब अपने पास मुझ को
आगे मिरे न ग़ैर से गो तुम ने बात की
हम हैं जिन्हों ने नाम-ए-चमन बू नहीं किया
टुकड़े कई इक दिल के मैं आपस में सिए हैं
जूँ शीशा भरा हूँ मय से लेकिन
मोहतसिब से सलाह कीजिएगा
बिना थी ऐश-ए-जहाँ की तमाम ग़फ़लत पर
मिरा जी गो तुझे प्यारा नहीं है