कर न जुरअत तू ऐ तबीब कि ये
दिल का धड़का है इख़्तिलाज नहीं
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जी में चुहलें थीं जो कुछ सो तो गईं यार के साथ
चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
शामत है क्या कि शैख़ से कोई मिले कि वाँ
कल ऐ आशोब-ए-नाला आज नहीं
दिल मिरा देख देख जलता है
यूँ तो दुनिया में हर इक काम के उस्ताद हैं शैख़
जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
मुझ बे-गुनह के क़त्ल का आहंग कब तलक
आप जो कुछ क़रार करते हैं
ख़स नमत साथ मौज के लग ले