दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(274) Peoples Rate This
जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
फूटी भली वो आँख जो आँसू से तर नहीं
जूँ शीशा भरा हूँ मय से लेकिन
देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़
मस्जिद से गर तू शैख़ निकाला हमें तो क्या
अब तू ने गुल न गुल्सिताँ है याद
शिकवा न बख़्त से है ने आसमाँ से मुझ को
दिल को फाँसा है हर इक उज़्व की तेरे छब ने
'क़ाएम' मैं इख़्तियार किया शाएरी का ऐब
जी में चुहलें थीं जो कुछ सो तो गईं यार के साथ
रहने दे शब अपने पास मुझ को
जिया ब-काम कब इस बख़्त-ए-अर्जुमंद से मैं