डहा खड़ा है हज़ारों जगह से क़स्र-ए-वजूद
बताऊँ कौन सी उस की मैं उस्तुवार तरफ़
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आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
कर इम्तिहाँ टुक हो के तू खूँ-ख़्वार यक तरफ़
मैं कहा अहद क्या किया था रात
मअनी न आएँ दर्क में ग़ैर-अज़-वजूद-ए-लफ़्ज़
देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़
आगे कुछ उस के ज़िक्र-ए-दिल-ए-ज़ार मत करो
कब मैं कहता हूँ कि तेरा मैं गुनहगार न था
दिल मिरा देख देख जलता है
दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
कोई दिन आगे भी ज़ाहिद अजब ज़माना था
ऐ इश्क़ मिरे दोश पे तू बोझ रख अपना
क़िस्मत तो देख टूटी है जा कर कहाँ कमंद