बड़ न कह बात को तीं हज़रत-ए-'क़ाएम' की कि वो
मस्त-ए-अल्लाह हैं क्या जानिए क्या कहते हैं
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देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़
यूँही रंजिश हो और गिला भी यूँही
इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर
पढ़ के क़ासिद ख़त मिरा उस बद-ज़बाँ ने क्या कहा
संग को आब करें पल में हमारी बातें
आवे ख़िज़ाँ चमन की तरफ़ गर मैं रू करूँ
छोड़ मावा-ए-ज़क़न ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में फँसा
ख़स नमत साथ मौज के लग ले
की वफ़ा किस से भला फ़ाहिशा-ए-दुनिया ने
न दिल भरा है न अब नम रहा है आँखों में
पहले ही गधा मिले जहाँ शैख़
इक ढब पे कभू वो बुत-ए-ख़ुद-काम न पाया