आगे मिरे न ग़ैर से गो तुम ने बात की
सरकार की नज़र को तो पहचानता हूँ मैं
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निगाहों से निगाहें सामने होते ही जब लड़ियाँ
पूछो हो मुझ से तुम कि पिएगा भी तू शराब
मय पी जो चाहे आतिश-ए-दोज़ख़ से तू नजात
दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता
मैं किन आँखों से ये देखूँ कि साया साथ हो तेरे
लाएक़ वफ़ा के ख़ल्क़ ओ सज़ा-ए-जफ़ा हूँ मैं
सहरा पे गर जुनूँ मुझे लावे इताब में
जूँ शीशा भरा हूँ मय से लेकिन
इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर
दूँ हम-सरी में बैठ के किस ना-सज़ा के साथ
दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
मस्जिद से गर तू शैख़ निकाला हमें तो क्या