यूँही रंजिश हो और गिला भी यूँही
यूँही रंजिश हो और गिला भी यूँही
हो जे हर बात पर ख़फ़ा भी यूँही
कुछ न हम को ही भा गया ये तौर
वाक़ई ये कि है मज़ा भी यूँही
सैद-ए-कंजशक से न हाथ उठा
आ के फँस जाए है हुमा भी यूँही
जूँ उजाड़ा तू घर मिरा ऐ इश्क़
ख़ाना वीरान हो तिरा भी यूँही
क्यूँ न रोऊँ मैं देख ख़ंदा-ए-गुल
कि हँसे था वो बेवफ़ा भी यूँही
अब तलक मेरी ज़ीस्त ने की वफ़ा
बस मैं देखी तिरी जफ़ा भी यूँही
मस-ए-दिल को दिया कर अपने गुदाज़
हाथ चढ़ जा है कीमिया भी यूँही
ये कहाँ और वो गुल किधर 'क़ाएम'
इक हवा बाँधे है सबा भी यूँही
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