वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर
वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर
जुज़ ये कि तिरी रज़ा है बेहतर
देता है वही तबीब-ए-हाज़िक़
बीमार को जो दवा है बेहतर
किस से कहूँ हाल-ए-बद कि वो आप
कुछ मुझ से भी जानता है बेहतर
आईना हो या तो आब लेकिन
हर शक्ल में इक सफ़ा है बेहतर
चर्चे से अगर हो सोहबत-ए-ग़म
शादी से हज़ार जा है बेहतर
ले नाला ख़बर कि ज़ख़्म दिल का
फिर कहते हैं हो चला है बेहतर
हर उज़्व है दिल-फ़रेब तेरा
कहिए किसे कौन सा है बेहतर
जाती है नसीम उस गली को
उठ सकिए तो क़ाफ़िला है बेहतर
'क़ाएम' जो कहें हैं फ़ारसी यार
इस से तो ये रेख़्ता है बेहतर
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