तर्क-ए-वफ़ा गरचे सदाक़त नहीं
तर्क-ए-वफ़ा गरचे सदाक़त नहीं
पर ये सितम सहने की ताक़त नहीं
तर्क कर अपना भी कि इस राह में
हर कोई शायान-ए-रिफ़ाक़त नहीं
कोई दवा मुझ से की करता है लेक
अब के तबीबों में हज़ाक़त नहीं
कस्ब-ए-हुनर कर न कि इस वक़्त में
इस से बड़ी और हिमाक़त नहीं
नाम ही 'क़ाएम' का गया है निकल
वर्ना कुछ इतनी तो लियाक़त नहीं
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