ता-चंद सुख़न-साज़ी-ए-नैरंग-ए-ख़राबात
ता-चंद सुख़न-साज़ी-ए-नैरंग-ए-ख़राबात
याँ क़स्द-ए-ख़राबी है न आहंग-ए-ख़राबात
आ दिल में कि इस दर पे जो बैठा है फिर उन ने
फ़र्सख़ गिने काबा के न फ़रसंग-ए-ख़राबात
देखें तो तिरी धूम टुक ऐ शोरिश-ए-मस्ती
फिर आज सर ओ सीना है और संग-ए-ख़राबात
तश्बीह मैं जिस दिल को न दी काबा से सो दिल
अब इश्क़-ए-मय-ओ-मुग़ से है हम-रंग-ए-ख़राबात
ऐ ग़ुंचा-दहन बस लब-ए-मय-गूँ को तनिक मूँद
दिल तंग कहाँ तक हो दिल-ए-तंग-ए-ख़राबात
सौ सर का जो हो आए तो मक़्बूल नहीं याँ
खाई नहीं जिस रिंद ने सरचंग-ए-ख़राबात
किस नाम से 'क़ाएम' मैं तुझे कह तू पुकारूँ
ऐ आर-ए-दर-ए-मस्जिद ओ ऐ नंग-ए-ख़राबात
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