फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया
फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया
तीर सा कुछ दिल से गुज़र कर गया
ख़ाक का सा ढेर सर-ए-रह हूँ मैं
क़ाफ़िला-ए-उम्र सफ़र कर गया
ख़ुल्द-ए-बरीं उस की है वाँ बूद-ओ-बाश
याँ किसी दिल बीच जो घर कर गया
छुप के तिरे कूचा से गुज़रा मैं लेक
नाला इक आलम को ख़बर कर गया
जूँ शरर-ए-काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा
शाम-ए-ग़म अपनी मैं सहर कर गया
ता-ब-फ़लक नाला तो पहुँचा था रात
मैं ही कुछ अल्लाह का डर कर गया
पूछ न 'क़ाएम' की कटी क्यूँकि उम्र
जूँ हवा यक-चंद बसर कर गया
(333) Peoples Rate This