चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
पर जिस में ये दूरी हो वो क्या ख़ाक मोहब्बत
आ इश्क़ अगर क़स्द तिजारत है कि इस जा
हैं तूदा हर इक घर दो सह अफ़्लाक मोहब्बत
नासेह तू अबस सी के न रुस्वा हो कि ज़ालिम
रखता है गरेबाँ से मिरे चाक मोहब्बत
अपने तो लिए ज़हर की तासीर थी इस में
गो वास्ते आलम के हो तिरयाक मोहब्बत
बुलबुल तो हूँ 'क़ाएम' मैं पर उस बाग़ का जिस में
बे-रुतबा है मिस्ल-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक मोहब्बत
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