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रहगुज़र - क़तील शिफ़ाई कविता - Darsaal

रहगुज़र

फिर वही बढ़ते हुए रुकते हुए क़दमों की चाप

फिर वही सहमी हुई सिमटी हुई सरगोशियाँ

फिर वही बहकी हुई महकी हुई सी आहटें

फिर वही गाती सी लहराती सी कुछ मदहोशियां

ज़िंदगी तूफ़ान थी सैलाब थी भौंचाल थी

वक़्त फिर भी करवटों पर करवटें लेता रहा

क़ाफ़िले इस राह पर आते रहे जाते रहे

राहबर सब को मसाफ़त का सिला देता रहा

वो तबस्सुम जिस को रोते हैं कई उजड़े सुहाग

बन रहा है इक लचकता ख़ार अपने पाँव में

वो नज़र जो कल तलक हर जिस्म को डसती रही

आज सुस्ताने लगी है मस्लहत की छाँव में

कितनी उम्मीदों के मदफ़न उस के हाथों बन चुके

कितने अरमानों के लाशे उस ने ख़ुद कफ़्नाए हैं

आह ये मक़्तल कि जिस के पासबानी के लिए!

कितने मुस्तक़बिल फ़ना के दोश पर लहराए हैं

कुल्फ़तों से तंग आ कर बे-ख़ुदी की खोज में

क़ाफ़िले इस राह पर आते रहें जाते रहें

राहबर सब को मसाफ़त का सिला देता रहे

राह-रौ अपने तजस्सुस का सिला पाते रहें

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In Hindi By Famous Poet Qateel Shifai. is written by Qateel Shifai. Complete Poem in Hindi by Qateel Shifai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.