उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
अगर मिरा साथ दे सको तुम तो मौत को भी पुकार आऊँ
कुछ इस तरह जी रहा हूँ जैसे उठाए फिरता हूँ लाश अपनी
जो तुम ज़रा सा भी दो सहारा तो बार-ए-हस्ती उतार आऊँ
बदल गए ज़िंदगी के मेहवर तवाफ़-ए-दैर-ओ-हरम कहाँ का
तुम्हारी महफ़िल अगर हो बाक़ी तो मैं भी परवाना-वार आऊँ
कोई तो ऐसा मक़ाम होगा जहाँ मुझे भी सुकूँ मिलेगा
ज़मीं के तेवर बदल रहे हैं तो आसमाँ को सँवार आऊँ
अगरचे इसरार-ए-बे-खु़दी है तुझे भी ज़र-पोश महफ़िलों में
मुझे भी ज़िद है कि तेरे दिल में नुक़ूश-ए-माज़ी उभार आऊँ
सुना है एक अजनबी सी मंज़िल को उठ रहे हैं क़दम तुम्हारे
बुरा न मानो तो रहनुमाई को मैं सर-ए-रहगुज़ार आऊँ
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