Ghazals of Qateel Shifai
नाम | क़तील शिफ़ाई |
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अंग्रेज़ी नाम | Qateel Shifai |
जन्म की तारीख | 1919 |
मौत की तिथि | 2001 |
ज़ीस्त की गर्मी-ए-बेदार भी लाया सूरज
ज़िंदगी के ग़म लाखों और चश्म-ए-नम तन्हा
ज़िक्र मिरा और तेरे लब पर याद मिरी और तेरे दिल में
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
ये मिरा बुझता सुलगता सिन ये मेरे रात-दिन
ये किस ने कहा तुम कूच करो बातें न बनाओ इंशा-जी
ये बात फिर मुझे सूरज बताने आया है
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
यारो कहाँ तक और मोहब्बत निभाऊँ मैं
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
वही गेसुओं की उड़ान है वही आरिज़ों का निखार है
विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है
उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
उस पर तुम्हारे प्यार का इल्ज़ाम भी तो है
उस अदा से भी हूँ मैं आश्ना तुझे इतना जिस पे ग़ुरूर है
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
तितलियों का रंग हो या झूमते बादल का रंग
थी हम-आग़ोशी मगर कुछ भी मुझे हासिल न था
तरब-ख़ानों के नग़्मे ग़म-कदों को भा नहीं सकते
तमाम-तर उसी ख़ाना-ख़राब जैसा है
तह में जो रह गए वो सदफ़ भी निकालिए
तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले
सुकून-ए-दिल तो कहाँ राहत-ए-नज़र भी नहीं
सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही
सिसकियाँ लेती हुई ग़मगीं हवाओ चुप रहो
शायद मिरे बदन की रुस्वाई चाहता है