क़तील शिफ़ाई कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़तील शिफ़ाई (page 7)
नाम | क़तील शिफ़ाई |
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अंग्रेज़ी नाम | Qateel Shifai |
जन्म की तारीख | 1919 |
मौत की तिथि | 2001 |
इतने ऊँचे मर्तबे तक तुझ को पहुँचाएगा कौन
इस दौर में तौफ़ीक़-ए-अना दी गई मुझ को
हुस्न को चाँद जवानी को कँवल कहते हैं
हम को तो इंतिज़ार-ए-सहर भी क़ुबूल है
हुदूद-ए-जल्वा-ए-कौन-ओ-मकाँ में रहते हैं
हो चुका इंतिज़ार सोने दे
हिकायात-ए-लब-ओ-रुख़्सार से आगे नहीं जाते
हाथ दिया इस ने मिरे हाथ में
हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी
हर बे-ज़बाँ को शोला-नवा कह लिया करो
हादसे फैल गए साया-ए-मिज़्गाँ की तरह
हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
हालात की उजड़ी महफ़िल में अब कोई सुलगता साज़ नहीं
हालात की भीगी रात भी है जज़्बात का तेज़ अलाव भी
हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता
गुनगुनाती सी कोई रात भी आ जाती है
घनघोर घटा के आँचल को जब काली रात निचोड़ गई
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
गरेबाँ दर गरेबाँ नुक्ता-आराई भी होती है
फ़सुर्दगी का मुदावा करें तो कैसे करें
फ़राज़-ए-बे-ख़ुदी से तेरा तिश्ना-लब नहीं उतरा
इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
एहतिराम-ए-लब-ओ-रुख़्सार तक आ पहुँचे हैं
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
दिल जलता है शाम सवेरे
चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल