हम तशख़्ख़ुस खो रहे हैं ज़ात की तश्हीर में
हम तशख़्ख़ुस खो रहे हैं ज़ात की तश्हीर में
ख़ुद बिखरते जा रहे हैं कोशिश-ए-तामीर में
ये भी सोचें काश इज़्ज़त क्या है और ज़िल्लत है क्या
वो जो रुस्वा हो रहे हैं हसरत-ए-तौक़ीर में
आज नख़्ल-ए-मस्लहत की छाँव में है महव-ए-ख़्वाब
परवरिश जिस की हुई थी साया-ए-शमशीर में
ऐ सुख़नवर तुम जो कहते हो वो क्यूँ करते नहीं
क्यूँ हम-आहंगी नहीं किरदार और तहरीर में
उस की सुब्हें दिल-कुशा हैं उस की शामें जाँ-फ़िज़ा
खो गया जो शख़्स लुत्फ़-ए-नाला-ए-शब-गीर में
हो अता जिस शख़्स को नूर-ए-बसीरत ऐ 'जलाल'
देख लेता है मुसव्विर को भी वो तस्वीर में
(393) Peoples Rate This