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हम तशख़्ख़ुस खो रहे हैं ज़ात की तश्हीर में - क़ासिम जलाल कविता - Darsaal

हम तशख़्ख़ुस खो रहे हैं ज़ात की तश्हीर में

हम तशख़्ख़ुस खो रहे हैं ज़ात की तश्हीर में

ख़ुद बिखरते जा रहे हैं कोशिश-ए-तामीर में

ये भी सोचें काश इज़्ज़त क्या है और ज़िल्लत है क्या

वो जो रुस्वा हो रहे हैं हसरत-ए-तौक़ीर में

आज नख़्ल-ए-मस्लहत की छाँव में है महव-ए-ख़्वाब

परवरिश जिस की हुई थी साया-ए-शमशीर में

ऐ सुख़नवर तुम जो कहते हो वो क्यूँ करते नहीं

क्यूँ हम-आहंगी नहीं किरदार और तहरीर में

उस की सुब्हें दिल-कुशा हैं उस की शामें जाँ-फ़िज़ा

खो गया जो शख़्स लुत्फ़-ए-नाला-ए-शब-गीर में

हो अता जिस शख़्स को नूर-ए-बसीरत ऐ 'जलाल'

देख लेता है मुसव्विर को भी वो तस्वीर में

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In Hindi By Famous Poet Qasim Jalal. is written by Qasim Jalal. Complete Poem in Hindi by Qasim Jalal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.