किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
अवाम ख़ल्क़ को मंज़ूर है चराग़-ए-मुराद
नहीं है अपनी मुराद 'आफ़रीदी' इस के सिवा
अगरचे है भी तो साक़ी-ओ-यार अयाग़-ए-मुराद
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फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक
कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
बंदा-परवर जो न पछ्ताइएगा
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ