यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
संग है का'बे में मूरत दैर में है मुश्तरक
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शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
ख़ुदा को सज्दा कर के मुब्तज़िल ज़ाहिद हुआ अब तो
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
इस अर्ज़ के तख़्ते पर संसार है और मैं हूँ
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं