नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
देखते ही तुझे फिर जान को खोते देखा
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किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
लब-ए-शीरीं से अगर हो न तेरा लब शीरीं
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी