मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा
तो शाद हो कि है ऐसा शिकार असीर मिरा
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काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
अपने जानान को ऐ जान इसी जान में ढूँढ
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
मारा जावेगा भाग ऐ नासेह