लब-ए-शीरीं से अगर हो न तेरा लब शीरीं
कोहकन तू भी तो अब दामन-ए-कोहसार न छोड़
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शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम
अपने जानान को ऐ जान इसी जान में ढूँढ
बंदा-परवर जो न पछ्ताइएगा
यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब