काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं
जा पहुँचना है किसी सूरत से अपने यार तक
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मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
मारा जावेगा भाग ऐ नासेह
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
ख़ुदा को सज्दा कर के मुब्तज़िल ज़ाहिद हुआ अब तो
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार