है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर
फ़हम वालों के तईं दैर-ओ-हरम दोनों एक
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(376) Peoples Rate This
शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'