फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
नामा-बर आह ज़ार ज़ार आया
तेरे जाने से फ़ित्ना हो तय्यार
ब-सर-ए-चश्म अश्क-बार आया
झाड़ा मरक़द पे मेरे जब दामन
आसमाँ का गोया ग़ुबार आया
मय से तौबा तो कर नहीं सकता
क्या करूँ मौसम-ए-बहार आया
मारा जावेगा भाग ऐ नासेह
देख ये नाज़नीं सवार आया
किसी मख़्लूक़ को ख़ुदा न दिखाए
जो कि मुझ पर दर-इंतिज़ार आया
इस की बेदाद का ख़ुदा दे अज्र
हाथ में ले के ज़ुल-फ़िक़ार आया
कहता है सर झुका जो आशिक़ है
मैं तो अब माइल-ए-शिकार आया
'आफ़रीदी' समझ हयात-ए-अबद
क़त्ल को तेरे गर वो यार आया
पेशवाई को इस की जा जल्दी
कह कि हाज़िर गुनाहगार आया
तुझे 'क़ासिम-अली' ख़ुदा की क़सम
कैसे ज़ालिम पे ए'तिबार आया
(438) Peoples Rate This