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पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर - क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी कविता - Darsaal

पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर

पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर

मैं अगर बंदा हूँ आसी पर मिरा मौला ग़फ़ूर

मा-सिवा दीदार ख़्वाहिश है मुझे किस चीज़ की

तू पड़ा फिरता है जन्नत ढूँढता हूर-ओ-क़ुसूर

मैं अगरचे रिंद हूँ तो आप को मैं आप को

ज़ोहद से तेरे मुझे मतलब न कुछ कार-ए-ज़रूर

तेरे तईं ग़र्रा है अपनी पारसाई ज़ोहद का

मेरे तईं अल्लाह के फ़ज़्ल-ओ-करम से है सुरूर

रिंद के मशरब पर ऐ ज़ाहिद तबस्सुम मत करे

भेद उस का कुछ न पावेगा तू है मा'नी से दूर

ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-अबरू सह जावे न तुझ से बुल-हवस

एक शम्अ से हुआ था जिस के सुर्मा कोह-ए-तूर

चूतड़ ऊपर सर झुकाना उस को तू समझा है फ़ख़्र

है नहीं क़ाबिल तू फज़्लुल्लाह का ऐ बे-शुऊर

क्या तुझे मालूम है दैर-ओ-हरम की एक राह

बुत-परस्ती उस जगह और इस जगह है यक उमूर

दम ग़नीमत है तो हर दम याद में ले दम के तईं

ज़िक्र दाइम 'आफ़रीदी' हो चराग़-अंदर-क़ुबूर

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In Hindi By Famous Poet Qasim Ali Khan Afridi. is written by Qasim Ali Khan Afridi. Complete Poem in Hindi by Qasim Ali Khan Afridi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.