कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
उलझ गई जो मोहब्बत में दुख़्तर-ए-तयमूस
मज़ा जो वस्ल का चाहे तो बार-ए-हिज्र उठा
फिर इंतिक़ाम हो आख़िर के तईं कनार-ओ-बोस
मजाज़ी हो कि हक़ीक़ी सरीह इश्क़ का नाम
लतीफ़ तोहफ़ा पियारा अजीब नाम उरूस
मुझे भी इश्क़ का है मरज़ क्या करूँ यारो
मुआलजे से मिरे आजिज़ आया जालीनूस
दिल ही में 'क़ासिम-अली' शम्-ए-इश्क़ कर रौशन
बचा ले बाद-ए-मुख़ालिफ़ से तन का कर फ़ानूस
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