दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
ग़म-ए-हिज्रत ब-जान-ए-मन बिसयार
नर्गिसी चश्म को कहाँ पाऊँ
जिसे तस्कीं हो ख़ातिर-ए-अफ़गार
रख्खूँ अपना कफ़न सिलाने को
पाऊँ गर मू-ए-ज़ुल्फ़ का यक-तार
बाक़ी अरमाँ रहा ब-दिल अफ़्सोस
जान जाती है यार यार पुकार
सनमा ज़ालिमाँ सता ले आ
मुंतज़िर कोई दम रहा बे-शुमार
देखना देख ले दिखा सूरत
वर्ना फिर मैं कहाँ कहाँ तू यार
'आफ़रीदी' गिरा ब-चाह-ए-ज़नख़
माह-ए-कनआ'न की तरह लाचार
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