अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
जो परवाना हुए तो जल गए हम
पड़े आ कर फ़लक के आसिया में
मिसाल-ए-दाना हाए दल गए हम
किसी सूरत न पाया हम ने आराम
यहाँ से वाँ के तईं बे-कल गए हम
न याँ से ले गए न वाँ से लाए
कफ़-ए-अफ़सोस नाहक़ मल गए हम
तिलिस्मात-ए-जहाँ का देख ज़ाहिर
तरफ़ मअ'नी के अब ओझल गए हम
चले आए थे तारीकी से लेकिन
प चलते वक़्त ले मशअ'ल गए हम
न आया हाथ वो दैर-ओ-हरम में
मिला जब दल के दर-मंदल गए हम
अगर समझोगे मा'नी शैख़ साहब
गए पर तुम को कर क़ाएल गए हम
रहेगा नाम 'अफ़रीदी' का ता-हश्र
हमें थे जो कि ला-ताइल गए हम
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