Ghazals of Qasim Ali Khan Afridi
नाम | क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी |
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अंग्रेज़ी नाम | Qasim Ali Khan Afridi |
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
जो मेरा ले गया दिल कौन वो इंसान है क्या है
जी रहे या न रहे हर क़दम-ए-यार न छोड़
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
इस अर्ज़ के तख़्ते पर संसार है और मैं हूँ
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
बंदा-परवर जो न पछ्ताइएगा
अपने जानान को ऐ जान इसी जान में ढूँढ
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक