क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
नाम | क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी |
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अंग्रेज़ी नाम | Qasim Ali Khan Afridi |
रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड
मुझ को तो शराब से मस्ती है और
किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़
यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार
मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा
मारा जावेगा भाग ऐ नासेह
लब-ए-शीरीं से अगर हो न तेरा लब शीरीं
ख़ुदा को सज्दा कर के मुब्तज़िल ज़ाहिद हुआ अब तो
काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं
इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
जो मेरा ले गया दिल कौन वो इंसान है क्या है