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किसी भी ज़हर से मुझ को नहीं कोई परहेज़ - क़मरुद्दीन कविता - Darsaal

किसी भी ज़हर से मुझ को नहीं कोई परहेज़

किसी भी ज़हर से मुझ को नहीं कोई परहेज़

मगर है शर्त बस इतनी कि हो न शहद-आमेज़

वो डर गया जो नज़र आई फ़ाख़्ता उस को

वो जिस के हाथ हमेशा से ही रहे ख़ूँ-रेज़

मैं ख़ुद समझ न सका आज तक ये अपना तिलिस्म

कि मुझ में है कभी फ़रहाद और कभी परवेज़

नमी पसीनों की मिलती रही है उस को और

अज़ल से बाक़ी है अब तक जो ख़ाक है ज़रख़ेज़

ये तिश्नगी थी मिरी जिस ने सर-निगूँ न किया

थे बे-शुमार वहाँ जाम और सब लबरेज़

कि एक रोज़ में कह ली है मैं ने एक ग़ज़ल

उस एक शख़्स की क़ुर्बत है क्या ग़ज़ल-अंगेज़

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In Hindi By Famous Poet Qamruddin. is written by Qamruddin. Complete Poem in Hindi by Qamruddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.