फिर वही ख़ाना-ए-बर्बाद हमारे लिए है
फिर वही ख़ाना-ए-बर्बाद हमारे लिए है
शहर-ए-ग़रनाता-ओ-बग़दाद हमारे लिए है
झेलना है हमें फिर कर्ब फ़रामोशी का
फिर वही सिलसिला-ए-याद हमारे लिए है
नींद के शहर-ए-तिलिस्मात मुबारक हों तुम्हें
जागते रहने की उफ़्ताद हमारे लिए है
ग़म हैं आशोब-ए-ख़ुदी में हमें वर्ना इक शहर
ख़ूँ से तर शोर से आबाद हमारे लिए है
ढूँडिए अक्स-ए-'क़मर' रात के आईने में
आज की शब यही इरशाद हमारे लिए है
(370) Peoples Rate This