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मैं अपने पाँव बढ़ाऊँ मगर कहाँ आगे - क़मर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

मैं अपने पाँव बढ़ाऊँ मगर कहाँ आगे

मैं अपने पाँव बढ़ाऊँ मगर कहाँ आगे

ज़मीन ख़त्म हुई अब है आसमाँ आगे

हर एक मोड़ पे मैं पूछता हूँ उस का पता

हर एक शख़्स ये कहता है बस वहाँ आगे

बिछड़ते जाते हैं अहबाब ख़्वाब की सूरत

गुज़रता जाता है यादों का कारवाँ आगे

बस अगले मोड़ तलक ही ये साफ़ मंज़र है

फिर उस के बा'द वही बे-कराँ धुआँ आगे

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In Hindi By Famous Poet Qamar Siddiqi. is written by Qamar Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Qamar Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.