Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9356f9f75bcb8076133140fd598e73af, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कभी है गुल कभी शमशीर सा है - क़मर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

कभी है गुल कभी शमशीर सा है

कभी है गुल कभी शमशीर सा है

वो गोया वादी-ए-कश्मीर सा है

रवाबित सब हिसार-ए-हिज्र में हैं

तअ'ल्लुक़ टूटती ज़ंजीर सा है

बुरा सा ख़्वाब देखा था जो शब में

ये दिन उस ख़्वाब की ता'बीर सा है

हैं गर्दिश में लहू साअत मनाज़िर

ज़माना आँख में तस्वीर सा है

'क़मर' गिर्दाब तक आओ तो जानो

जो मुज़्दा लहरों पे तहरीर सा है

(385) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Qamar Siddiqi. is written by Qamar Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Qamar Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.