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फिर से तिरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए - क़मर नक़वी कविता - Darsaal

फिर से तिरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए

फिर से तिरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए

लो फिर विसाल-ए-यार के लम्हे जवाँ हुए

इक बात बढ़ के बाइस-ए-नाराज़गी हुई

कुछ लफ़्ज़ मुँह से निकले तो आह-ओ-फ़ुग़ाँ हुए

तेरे सभी दरोग़ वजाहत में छुप गए

और मेरी साफ़ बात पे कितने गुमाँ हुए

क्यूँकर करेंगे याद वो दर्द-ए-फ़िराक़ में

हम इस क़दर क़रीब भी उन के कहाँ हुए

मोहलत ही कब मिली कि सँभल पाते हम 'क़मर'

हम पर तो जितने ज़ुल्म हुए ना-गहाँ हुए

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In Hindi By Famous Poet Qamar Naqvi. is written by Qamar Naqvi. Complete Poem in Hindi by Qamar Naqvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.