किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल
हमारी राह में तूफ़ाँ है देखिए क्या हो
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साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे
हर्फ़ आने न दिया इश्क़ की ख़ुद्दारी पर
क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए
मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
ग़म की तौहीन न कर ग़म की शिकायत कर के
नज़र है जल्वा-ए-जानाँ है देखिए क्या हो