तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
तुम उसी को वज्ह-ए-तरब कहो हम उसी को बाइ'स-ए-ग़म कहें
वही इक फ़साना-ए-इश्क़ है कभी तुम कहो कभी हम कहें
कभी ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा करें कभी दास्तान-ए-अलम कहें
बड़े ए'तिमाद से वो सुनें बड़े ए'तिमाद से हम कहें
जिसे इंक़लाब न छू सका उसे तू ने ख़ुद ही मिटा दिया
वही एक दिल का सनम-कदा जिसे आबरू-ए-हरम कहें
वही दिल-ख़राश सी इक नज़र जो ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ है नेश्तर
उसे कोई तर्ज़-ए-सितम कहे हम अदा-ए-पुर्सिश-ए-ग़म कहें
तुझे ये ख़बर नहीं साक़िया कि है मय-कशों का मक़ाम क्या
ये उन्हीं की वुसअ'त-ए-क़ल्ब है कि ख़ुद अपने ज़र्फ़ को कम कहें
हमा-आरज़ू हमा-बे-खु़दी हमा-बंदगी हमा-बे-कसी
यही चंद लम्हों की ज़िंदगी इसे क्यूँ न फ़ुर्सत-ए-ग़म कहें
'क़मर' इस से हम को ग़रज़ ही क्या है सभी से उस का मोआ'मला
जो ख़ुदा कहें वो ख़ुदा कहें जो सनम कहें वो सनम कहें
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