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साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे - क़मर मुरादाबादी कविता - Darsaal

साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे

साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे

मेरे साग़र में अगर कम है तो कम रहने दे

इश्क़-ए-आवारा को महरूम-ए-करम रहने दे

अपने माथे पे शिकन ज़ुल्फ़ में ख़म रहने दे

तू ज़माने को मिटाता है मिटा दे लेकिन

इश्क़ की राह में कुछ नक़्श-ए-क़दम रहने दे

मेरे उलझे हुए हालात ग़नीमत हैं मुझे

दिल की बातों में न आ पुर्सिश-ए-ग़म रहने दे

आशियाँ फूँक के तकमील-ए-चराग़ाँ कर दे

फ़स्ल-ए-गुल आई है गुलशन का भरम रहने दे

ज़िंदगी ग़म से सँवरती है निखरती है क़मर

ज़िंदगी को यूँही आलूदा-ए-ग़म रहने दे

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In Hindi By Famous Poet Qamar Moradabadi. is written by Qamar Moradabadi. Complete Poem in Hindi by Qamar Moradabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.