ये समाँ और रात की जादूगरी
चाँद का ले कर चली हाथों में ताज
कुछ तिलिस्मी लोग पथराए हुए
कुछ तिलिस्मी लड़कियाँ जैसे तमन्नाओं के मोर
जिन से आ कर खेलती है रात की नीलम-परी
और जा कर नाचती है शाम तक
हर क़दम पर एक शहज़ादे की मौत
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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आज सितारे आँगन में हैं उन को रुख़्सत मत करना
एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
शहर की गलियाँ घूम रही हैं मेरे क़दम के साथ
मैं बुलंदियों पर जल रहा हूँ
दस्त-ए-जुनूँ में दामन-ए-गुल को लाने की तदबीर करें
अपने सब चेहरे छुपा रक्खे हैं आईने में
किस सफ़र में हैं कि अब तक रास्ते नादीदा हैं
आसमाँ पर इक सितारा शाम से बेताब है
शाम अजीब शाम थी जिस में कोई उफ़क़ न था
रात का ताज
जाने दो इन नग़्मों को आहंग-ए-शिकस्त-ए-साज़ न समझो
शैख़ के घर के सामने आब-ए-हराम डाल दूँ