मैं अपने घर में दिए की तरह
जलना चाहता था
मगर अब एक फ़्लैट में
बल्ब की सूरत जल रहा हूँ
अगर कोई मुझे बुझाना चाहता है
तो मेरे बच्चे फिर मुझे जला देते हैं
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वीरानी
क़िस्सा-ए-चहार-ख़्वाब
एक अजब शहज़ादा मेरे बाग़ों का
मेरी मोहब्बत चाहती है
वो बातें इश्क़ कहता था कि सारा घर महकता था
मंसूर-हल्लाज
दजला के ख़्वाब
सुर्ख़ गुलाब
या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
ख़्वाब में जो कुछ देख रहा हूँ उस का दिखाना मुश्किल है
एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
मैं बुलंदियों पर जल रहा हूँ