जब मैं बच्चा था
रावी के गालों से डरता था
अब दुश्मन की चालों से डरता हूँ
मेरे बचपन में
आग की अतराफ़
द्राविड़ लड़कियाँ गीत गाती थी
और अब मैं एक होटल में
बैंड बजाता हूँ
और लोमड़ी की खाल से
अपना लिबास सीता हूँ
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साया नहीं है दूर तक साए में आएँ किस तरह
रात का ताज
सूरज से आगे इक जंगल है
आसमाँ पर इक सितारा शाम से बेताब है
शाम अजीब शाम थी जिस में कोई उफ़क़ न था
पहाड़ी की आख़िरी शाम
हम सितारों की तरह डूब गए
कपास का फूल
अल्मिया खेल का एक किरदार
मंसूर-हल्लाज
ग़म-ए-जानाँ की ख़बर लाती है
किस सफ़र में हैं कि अब तक रास्ते नादीदा हैं