पढ़ चुके हुस्न की तारीख़ को हम तेरे ब'अद
इश्क़ आगे न बढ़ा एक क़दम तेरे ब'अद
आज तक फिर कोई तस्वीर न ऐसी खींची
जैसे खा ली हो मुसव्विर ने क़सम तेरे ब'अद
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1391) Peoples Rate This
अब नज़अ का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
यूँ तुम्हारे ना-तवान-ए-शौक़ मंज़िल भर चले
फ़लक ना-मेहरबाँ है मिल रहे हैं मेहरबाँ फिर भी
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
अब तो मुँह से बोल मुझ को देख दिन भर हो गया
अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया
ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
बढ़ा बढ़ा के जफ़ाएँ झुका ही दोगे कमर
अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले
सज्दे तिरे कहने से मैं कर लूँ भी तो क्या हो
ख़त्म शब क़िस्सा-ए-मुख़्तसर न हुई
देखते हैं रक़्स में दिन रात पैमाने को हम