काम आईं शोख़ियाँ न अदा कारगर हुई
जो बात थी तुम्हारी वही बे-असर हुई
ख़ल्वत में जा के हँस दिए क्या इस से फ़ाएदा
सहरा में फूल खिल गया किस को ख़बर हुई
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अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा
न हो रिहाई क़फ़स से अगर नहीं होती
फ़लक ना-मेहरबाँ है मिल रहे हैं मेहरबाँ फिर भी
बढ़ा बढ़ा के जफ़ाएँ झुका ही दोगे कमर
नशेमन ख़ाक होने से वो सदमा दिल को पहुँचा है
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
इस में कोई फ़रेब तो ऐ आसमाँ नहीं
ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद
अभी बाक़ी हैं पत्तों पर जले तिनकों की तहरीरें
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
यूँ तुम्हारे ना-तवान-ए-शौक़ मंज़िल भर चले
सुर्ख़ियाँ क्यूँ ढूँढ कर लाऊँ फ़साने के लिए