हालात-ए-गुलिस्ताँ पे बहुत हम ने नज़र की
अपनों के सिवा बात किसी से न की डर की
सय्याद को देता है पता नग़्मा-ए-बुलबुल
गुलचीं को बुला लेती है ख़ुशबू गुल-ए-तर की
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1037) Peoples Rate This
साँस उन के मरीज़-ए-हसरत की रुक रुक के चलती जाती है
करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले
काम आईं शोख़ियाँ न अदा कारगर हुई
ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
'क़मर' अफ़्शाँ चुनी है रुख़ पे उस ने इस सलीक़े से
नशेमन ख़ाक होने से वो सदमा दिल को पहुँचा है
सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
शब को मिरा जनाज़ा जाएगा यूँ निकल कर
अब आगे इस में तुम्हारा भी नाम आएगा
अब नज़अ का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
ख़त्म शब क़िस्सा-ए-मुख़्तसर न हुई
अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा