तेरे क़ुर्बान 'क़मर' मुँह सर-ए-गुलज़ार न खोल
सदक़े उस चाँद सी सूरत पे न हो जाए बहार
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(411) Peoples Rate This
रहा बरसात में ऐ शैख़ मैं सूखा न तू सूखा
रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'
ये रस्ते में किस से मुलाक़ात कर ली
न हो रिहाई क़फ़स से अगर नहीं होती
बोझ इतना भर गई थी रूह-ए-सुबुक निकल के
अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
अगर आ जाए पहलू में 'क़मर' वो माह-ए-कामिल भी
ख़ून होता है सहर तक मिरे अरमानों का