रौशन है मेरा नाम बड़ा नामवर हूँ मैं
शाहिद हैं आसमाँ के सितारे क़मर हूँ मैं
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काम आईं शोख़ियाँ न अदा कारगर हुई
ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद
मुझे बाग़बाँ से गिला ये है कि चमन से बे-ख़बरी रही
आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
तौबा कीजे अब फ़रेब-ए-दोस्ती खाएँगे क्या
'क़मर' अपने दाग़-ए-दिल की वो कहानी मैं ने छेड़ी
हर वक़्त महवियत है यही सोचता हूँ मैं
करेंगे शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल खोल कर अपना
देखते हैं रक़्स में दिन रात पैमाने को हम
बोझ इतना भर गई थी रूह-ए-सुबुक निकल के
हालात-ए-गुलिस्ताँ पे बहुत हम ने नज़र की