नज़'अ की और भी तकलीफ़ बढ़ा दी तुम ने
कुछ न बन आया तो आवाज़ सुना दी तुम ने
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Allama Iqbal
Jaun Eliya
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Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले
दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए
पढ़ चुके हुस्न की तारीख़ को हम तेरे ब'अद
फ़लक ना-मेहरबाँ है मिल रहे हैं मेहरबाँ फिर भी
बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह
तौबा कीजे अब फ़रेब-ए-दोस्ती खाएँगे क्या
सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
हालात-ए-गुलिस्ताँ पे बहुत हम ने नज़र की
रहा बरसात में ऐ शैख़ मैं सूखा न तू सूखा
कौन से थे वो तुम्हारे अहद जो टूटे न थे
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
इस लिए आरज़ू छुपाई है