अभी बाक़ी हैं पत्तों पर जले तिनकों की तहरीरें
ये वो तारीख़ है बिजली गिरी थी जब गुलिस्ताँ पर
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अब आगे इस में तुम्हारा भी नाम आएगा
ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद
मुद्दतें हुईं अब तो जल के आशियाँ अपना
पढ़ चुके हुस्न की तारीख़ को हम तेरे ब'अद
सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
'क़मर' किसी से भी दिल का इलाज हो न सका
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
शब को मिरा जनाज़ा जाएगा यूँ निकल कर
हटी ज़ुल्फ़ उन के चेहरे से मगर आहिस्ता आहिस्ता
दबा के क़ब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम
उन्हें क्यूँ फूल दुश्मन ईद में पहनाए जाते हैं
वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'